रास्ते पर हूं मैं...
अपनी मंजिल की ओर निरंतर चल
रहा हूं,
पर न जाने क्यों मंजिल के
करीब पहुंचकर गिर रहा हूं...
ये गिरने का दौर भी है उतना
पुराना,
जितनी की मेरी
तमन्नाएं...मेरे सपने.
मेरे सपने जिन्हें मैने अपने और अपनों के लिए देखा...
मेरे सपने जिन्हें मैने अपने और अपनों के लिए देखा...
अफसोस के सपनों और खुशी के
पैमाने टूटने का सिलसिला लगातार जारी है..
आखिर ये रुके तो रुके
कैसे...
क्योंकि अभी न मैं थका हूं
न मेरी आंखे...
आखें जो आंसुओं को भी जगह
नहीं देती है..
न जाने क्यों मेरे सपनों को लगातार भाड़े पर जगह दिए हुई हैं..
न जाने क्यों मेरे सपनों को लगातार भाड़े पर जगह दिए हुई हैं..
जिसकी कीमत मुझे अपनी हर
हार के बाद चुकानी पड़ती है...
मेरे सपनों के आका, भगवान
भी अब हाथ जोड़ चुके हैं...
कह चले हैं कि विकास अब
हमें बख्श दो...
क्योंकि न तुम थकोगे न
तुम्हारी सपनो वाली आखें...
ज्यादा करोगे तो बंद करेंगे
तुम्हारी आंखे..
भगवान.... जिन्हें मैं कई
बार मैं नास्तिक हूं कह चुका हूं..
पर हर नए सपने के बाद मैं
शेयर बाजार की तरह लौट आता हूं,
यह भी अब वो जान चुके हैं..
शायद इसीलिए न वो सुन रहे
हैं न मेरी आंखे..
क्योंकि अब दोनों ही मुझसे
आराम चाहते हैं...
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