खुला खत: जोहरा आपा, हमने जिंदादिली तुमसे सीखी


जोहरा आपा.
मैं दादी कहना चाहता था, पर आपा कहता हूं तो सबकी आवाज मेरी आवाज में शामिल हो जाती है. हां तो आपा, लोग कह रहे हैं कि जोहरा इज नो मोर . पागल हैं क्या ये? इन्हें मालूम नहीं कि जिंदादिली भी कभी मरा करती है?



कह रहे हैं कि जोहरा 'रेस्ट इन पीस'. मैं सोचता हूं कि तुम उस 'सो कॉल्ड पीस' में रहोगी कैसे. बोर हो जाओगी, सच बता रहा हूं. कोई टुकड़ों में भी शांति पा सकता है भला. वो भी तुम. तुम जैसी नटखट, शरारती, चुलबुली छोकरी. 102 साल की छोकरी. सवाल ही नहीं उठता. इसलिए मैं 'रेस्ट इन पीस' नहीं, 'रेस्ट इन फन' कहूंगा. सच बताऊं तो तुम्हारी रुखसती से न मैं दुखी हूं, न ज्यादा परेशान. हचककर खूब जी लीं यार तुम. जानता हूं कि 'ओल्ड वुमन' कहकर छेड़ूंगा तो मेरी शामत आ जाएगी.

सुनो, अब ऊपर जा रही हो तो बदल न जाना. तुम्हारी वो नटखट लड़कियों वाली हरकतें थीं न फिल्मों वाली, उन्हें जारी रखना. अब चली गई हो तो बताए देता हूं कि मैंने तुम्हारा कोई नाटक या एक्टिंग का नायाब नमूना नहीं देखा, लेकिन फिल्में खूब देखीं. तुम्हें देखता था तो लगता था कि हर औरत को ऐसा ही होना चाहिए.
'चीनी कम' में तुमने अमिताभ की जो टांग खिचाई की थी. आहा. ऐसा लगा था कि अमिताभ को हमने छेड़ा हो और हम ही महानायक के मजे लेकर खिलखिला दिए हों. इस जीवंत भरोसे से ही तुम ही किसी को डांट सकती थीं. तुम्हारे गालों पर जो नूर झुर्रियों से होते हुए टपकता है, दावे से कह सकता हूं कि आज भी तमाम दिलफेंक बुढ़ऊ उस पर अपनी बची-खुची जान छिड़कते होंगे.

धुंधली सी एक याद है. बताऊं क्या. तब मैंने 'दिल से' फिल्म देखी थी. फिल्म देखने के बाद जब अपनी दादी से मिला तो बोला कि ऐ दादी तुम भी फिल्मों में बूढ़ी हीरोइन बन जाओ न. तो दादी ने प्यार से पागल कहकर हल्की सी चपत लगा दी. अभी दो साल पहले जब तुमने सावन की सेंचुरी लगाई थी. जन्मदिन का केक सामने पड़ा था और तुम चाकू को हमलावर अंदाज में पकड़कर पोज देने में व्यस्त थीं. दिल बाग-बाग हो गया था कसम से. लगा था कि आपा के दस साल अभी कहीं नहीं गए.

टीवी पर तुम्हारा खूबसूरत चेहरा और बच्चे की किलकारी-सी आवाज खूब देखी और सुनी थी. तुम जब हंसती थीं तो दुधमुंहे बच्ची की तरह क्यूट लगती थीं. अब जब बॉलीवुड और धरतीवुड से बिना बताए 102 का रिकॉर्ड बनाकर सरक ली हो. तब मन कर रहा है कि तसल्ली से बैठकर तुम्हारी जिंदगी का एक-एक पाठ पढ़कर पी जाऊं. तु्म्हारी जिंदादिली को बार-बार सलाम करूं. झुर्रियों वाले चेहरे के साथ फ्लर्ट करने की हिम्मत के लिए तुम्हारी तारीफ में कसीदे पढ़ूं.

अच्छा सुनो आपा, ऊपर जा रही हो. वहां ज्यादा थकावट नहीं होती होगी न. कोई काम नहीं होता है न. तो वो जो तुम करियर की शुरुआत में डांस का जादू बिखेरा करती थीं न, उसे वहां फिर शुरू करना प्लीज. अपनी नटखट हरकतों और 'कातिल' एक्सप्रेशन्स को बनाए रखना. बाकी इश्क तो लड़ाते ही रहना. मौका लगे तो कोई सस्ता टिकाऊ ईमानदार बुढ़ऊ सांवरिया भी ढूंढ लेना. हम जरा कुछ सावन तुम्हारे नक्शे कदम पर चलते हुए बिता लें. फिर आते हैं वहीं, तुम्हारे पास. दिल और जुबान पर 'चीनी कम' नहीं, ज्यादा लिए हुए. जाओ, जन्नत वालों को जिंदादिली सिखाओ आपा. विद सारे-जहां का लव.
'चीनी कम' में तुमने अमिताभ की जो टांग खिचाई की थी. आहा. ऐसा लगा था कि अमिताभ को हमने छेड़ा हो और हम ही महानायक के मजे लेकर खिलखिला दिए हों. इस जीवंत भरोसे से ही तुम ही किसी को डांट सकती थीं. तुम्हारे गालों पर जो नूर झुर्रियों से होते हुए टपकता है, दावे से कह सकता हूं कि आज भी तमाम दिलफेंक बुढ़ऊ उस पर अपनी बची-खुची जान छिड़कते होंगे.

धुंधली सी एक याद है. बताऊं क्या. तब मैंने 'दिल से' फिल्म देखी थी. फिल्म देखने के बाद जब अपनी दादी से मिला तो बोला कि ऐ दादी तुम भी फिल्मों में बूढ़ी हीरोइन बन जाओ न. तो दादी ने प्यार से पागल कहकर हल्की सी चपत लगा दी. अभी दो साल पहले जब तुमने सावन की सेंचुरी लगाई थी. जन्मदिन का केक सामने पड़ा था और तुम चाकू को हमलावर अंदाज में पकड़कर पोज देने में व्यस्त थीं. दिल बाग-बाग हो गया था कसम से. लगा था कि आपा के दस साल अभी कहीं नहीं गए.

टीवी पर तुम्हारा खूबसूरत चेहरा और बच्चे की किलकारी-सी आवाज खूब देखी और सुनी थी. तुम जब हंसती थीं तो दुधमुंहे बच्ची की तरह क्यूट लगती थीं. अब जब बॉलीवुड और धरतीवुड से बिना बताए 102 का रिकॉर्ड बनाकर सरक ली हो. तब मन कर रहा है कि तसल्ली से बैठकर तुम्हारी जिंदगी का एक-एक पाठ पढ़कर पी जाऊं. तु्म्हारी जिंदादिली को बार-बार सलाम करूं. झुर्रियों वाले चेहरे के साथ फ्लर्ट करने की हिम्मत के लिए तुम्हारी तारीफ में कसीदे पढ़ूं.

अच्छा सुनो आपा, ऊपर जा रही हो. वहां ज्यादा थकावट नहीं होती होगी न. कोई काम नहीं होता है न. तो वो जो तुम करियर की शुरुआत में डांस का जादू बिखेरा करती थीं न, उसे वहां फिर शुरू करना प्लीज. अपनी नटखट हरकतों और 'कातिल' एक्सप्रेशन्स को बनाए रखना. बाकी इश्क तो लड़ाते ही रहना. मौका लगे तो कोई सस्ता टिकाऊ ईमानदार बुढ़ऊ सांवरिया भी ढूंढ लेना. हम जरा कुछ सावन तुम्हारे नक्शे कदम पर चलते हुए बिता लें. फिर आते हैं वहीं, तुम्हारे पास. दिल और जुबान पर 'चीनी कम' नहीं, ज्यादा लिए हुए. जाओ, जन्नत वालों को जिंदादिली सिखाओ आपा. विद सारे-जहां का लव.

ये खत 11 जुलाई को आजतक की वेबसाइट के लिए लिखा था. खत को खूबसूरती कुलदीप मिश्र ने दी

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