सबसे खतरनाक होता है हमारा इमोशनल हो जाना

लगता है तुम भावुक इंसान नहीं थे पाश. बेवजह ही सपनों के मर जाने को खतरनाक बता गए. पाश, सबसे खतरनाक सपनों का मर जाना नहीं, भावुक होना होता है. सपनों के मर जाने पर किसी भी एहसास से दूर इंसान अपनी मस्ती में रहता है. उसे तो यह एहसास भी नहीं होता है कि वो किस तरफ जा रहा है या उसके अधपके सपने मर रहे हैं लेकिन जब वो इमोशनल होता है. तो उसे एक बात का एहसास खुद की रची उन दीवारों के बीच समेटना होता है. जिनके दरमियां वो सोचता है. उदास होता है. खुश होता है. चुप रहते हुए रोता है.

जिस तरह प्यार के पीछे कोई वजह नहीं होती है. ठीक उसी तरह भावुक इंसान छोटी छोटी खुशियों के पीछे भागते हुए गिरने पर भावुक हो जाता है. उसके भावुक होने का किसी पर कोई खास फर्क भी नहीं पड़ता है. पर फिर भी वो बीती जिंदगी की तहें खोलने लग जाता है और उससे निकालता है कोई ऐसा खास पल. जो उसे हंसा दे और हंसने के कुछ देर बाद ही उसकी आंखों को साफ करता हुआ पानी उसके गालों पर ला दे.

भावुक इंसान खुशियों को हासिल करने की अपनी परिभाषाओं के बीच रोज पिसता है. अपनी इच्छाओं का भेष बदलकर उन्हें इस तरह से रखता है. जैसे उसके जन्म लेने का मकसद उसकी भावुकता से जुड़ा हुआ है. भावुक इंसान थोड़ा मतलबी भी होता है. कमबख्त दुनिया को दिखावा करते हुए खुद के संतोष के लिए रोज जीता है. संतोष जो उसके ही चुने हुए लोगों की खुशियों से जुड़ा होता है. इन खुशियों के बीच वो रोज कत्ल करता है अपने उन तमाम सपनों का. जिन्हें वो मेट्रो , ऑफिस और अपने कॉलेज में साथ चलते लोगों को देखते हुए पालता है. लेकिन भावुक अपना लघु शातिर दिमाग चलाकर ऐसे मौका पर अपनी तुलना अपने से किसी कम कर खुद को एक मंद जीत का दिलासा देता है.

इन सब के बीच उसके सपने मर रहे होते हैं. खो रहे होते हैं. जगह बदल रहे होते हैं और जमाने के लिए भावुकता में डूबा वो धूर्त भावुक इस बीच अपनी बेफिजूल की भावुकता के लिए उम्मीदें पाल बैठता है. बस. यही से शुरू होता है एक खतरनाक सफर. जिसमें हार बार हारता सिर्फ भावुक ही है. क्योंकि वो अपने किए जितनी उम्मीदें पालना लगता है... उन लोगों से जिन्हें अब आदत हो चुकी है. धूर्त भावुक की भावनाओं से मनोरंजन करने का... इसीलिए पाश समझो.... अब सबसे खतरनाक सपनों का मन जाना नहीं... भावुक हो जाना है.

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