कहानी: शायद, खुशफहमी ही थी उसकी मौत की वजह

खुद की जिंदगी में अकेले-धकेले पड़े लोग अक्सर बाहर से बहुत लोगों से घिरे दिखते हैं. बाहर से चुप रहने का एक मतलब ये भी हो सकता है कि भीतर बहुत शोर मचा हो. बस उसकी आवाज बाहर नहीं आती.

आचमन ने अपना अकेलापन फेसबुक और दोस्तों के बीच खोज लिया था. शुरुआत में ये उसका अकेलापन ही था कि वो फेसबुक पर लिखने लगा. लिखने के दौरान दिल-दिमाग में अचानक से कुछ आते ही वो कुछ भी लिखने लगा. पर न जाने कौन सी वो बात थी, जिसके चलते वो लोगों से मिलने पर जिंदगी को खुशी से जीने के तरीके बताने लगा था. लोगों को शायद उसकी बात भी पसंद आती थी. महीनों-साल बीतने पर उसने खुद को खुशफहमी पाले एक ऐसे शख्स के तौर पर गढ़ लिया था, जो शायद जिंदगी जीने..खुश रहना का नजरिया लोगों के बीच बांटने लगा था.

लोगों से इनबॉक्स पर बात करने के दौरान मिली कुछ तारीफों ने उसके अकेलेपन को खत्म कर दिया था. नौकरी की थकान और जिंदगी के अकेलेपन के बीच उसे खुशफहमी होने लगी थी कि वो लोगों के दर्द बांट रहा है. खुशियां फैला रहा है.

फिर एक दिन जब उसकी खुशफहमी ने चोला उतारा तो आचमन ने खुद को गलतफहमी में पाया. मन उचटते ही न जाने उसे क्या सूझी और एक काली रात 9.10 बजे उसने अपना फेसबुक अकाउंट डिएक्टिवेट मार दिया. वो शायद खुद के अकेलेपन से बात करना चाह रहा था. लेकिन एक दिन शायद बीता ही था कि उसे पता चला कि एक फेसबुक फ्रेंड यशिका ने सुसाइड कर लिया है. ये सुनते ही उसे वो सब बातें याद आने लगीं जो कमेंट-इनबॉक्स में वो अक्सर यशिका से कर लिया करता था. सब्र और बढ़ती बेचैनी के बीच वो जैसे ही अकाउंट वापस एक्टिव करता है. एक मैसेज उसे मिलता है, मैसेज यशिका का. उसी रात 9.10 पर भेजा एक मैसेज.

'आचमन...तुम कहते हो जिंदगी हंसकर जीनी चाहिए. पर ये मुश्किल है. मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है..क्या अभी बात हो सकती है.'

ये सुसाइड वाली रात से पहले यशिका का आचमन को भेजा मैसेज था. करीब उसी वक्त पर जब आचमन ने अपना अकाउंट डिएक्टिव किया था.

मैसेज को कई बार पढ़ने के बाद आचमन पत्थर सी एक टक आंख लिए बिना किसी दिशा को देखे बुत बन रहा. वो मैसेज को पढ़ तो रहा था, पर समझने से शायद बच रहा था. मैसेज पढ़ने और समझने के बीच उसकी एक आंख से आंसू गाल के अंतिम कोने को छूते हुए नीचे कूद पड़ा. जिसके बाद आंसू तो नहीं दिखा, बस एक गीला मटमैला सा निशां गाल पर रह गया.

आचमन के अकेलेपन के साथ वो मैसेज जुड़ गया था. वो दिनभर उसे पढ़ता..सोचता रहता. कितनी ही रातें वो इस इंतजार में फेसबुक पर ऑनलाइन रहकर जगने लगा था कि शायद कोई उससे अपने दिल की बात कहना चाह रहा हो. ये सच को नजरअंदाज कर कि वो अब फेसबुक और लोगों से मिलने पर खुश रहने की बात करना बंद कर चुका था. उसके भीतर की हंसी जो अकेलेपन को ढकने के लिए उसने ओढ़ी थी...मानो सर्दी की ओस में भीग चुकी हो, जिसे ओढ़ने का कोई मतलब नहीं रह जाता है.

वो धीरे धीरे खुद को कसूरवार मानने लगा था. शायद उस दिन मैं यशिका से बात कर पाता तो वो आज जिंदा होती. न जाने कैसी आदत खुद में पाल थी यशिका के जाने के बाद. अंजान..डिजिटल लोगों से क्यों इतना जुड़ा महसूस करने लगा था वो खुद को. पहाड़ी पत्थर हो चला था आचमन, जो कभी भी गिर जाता है. कितनी ही बार रात में लोगों को ऑनलाइन देखता तो मैसेज करने लगा था.
आप ठीक तो हैं.

हां मैं ठीक हूं. इत्ती रात को क्यों पूछ रहे हो आचमन?


हर बार यही जवाब मिलता था उसे. दोस्तों को फोन करके हाल चाल पूछने की नई फॉर्मेलिटी भरी आदत हो चली थी उसे. पर उसे हर बार सब ठीक ही मिलता था. बस यशिका उसे वापस नहीं मिलती थी. न फेसबुक पर न असलियत में. आचमन यशिका से सिर्फ 4 बार मिला था. हाय हैलो और कुछ बातें. उसे यशिका से प्यार नहीं था. बस वो उसके इमोशनल और नेक दिल की वजह से उसकी कद्र करता था.

लेकिन अब वो अपनी नजर में कातिल बन चुका था. झूठी बातें, छवियां गढ़ने और भाग जाने वाला कातिल. महीने बीत जाने के बाद उस काली अंधेरी रात में वो लगातार यशिका का मैसेज पढ़ता रहा...किसी के ऑनलाइन होने और खुद से बात किए जाने का इंतजार करता रहा. मैसेज पढ़ता रहा. पूरी रात.

सुबह दफ्तर न पहुंचने पर जब किसी ने उसे फोन किया, तो फोन किसी दूसरे ने उठाया, जिसके बाद पीछे से सिर्फ रोने...चीखती सिसकियों और मातम की आवाज आई. आचमन का अकेलापन खत्म हो चुका था.








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