जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे... मुकेश उसे जोड़ दे


माथुर साहेब के यहां बिटिया की बारात आ चुकी थी. कोई खाना पीना देख रहा था तो कोई कुर्सियां संभाल रहा था. बारातियों के स्वागत के लिए माथुर साहेब के छठे नंबर के लड़के को खड़ा किया जाता है. बहन की शादी में ये लड़का हाथ जोड़कर नमस्ते नहीं, गाना गा रहा था. बाराती बंबई वाले भी थे. अगली सुबह इस लड़के के घर गए और माथुर साहेब से बोले- आपका लड़का सही गाता है, इसे बंबई भेजिए..बहुत नाम कमाएगा.

माथुर साहेब ने अपने बेटे से पूछा- क्या कह रहे हैं ये लोग? मैट्रिक में पढ़ रहा ये लड़का बोला-  फिल्मों वाले लोग हैं ये. माथुर साहेब बोले- नाह जी, हम तो अपने लड़के को क्लर्क बनवा देंगे. उस रोज़ तो बात वहीं दब गई. लेकिन कुछ वक्त बाद ये लड़का बंबई में 'निर्दोष' सा खड़ा था. शुरुआती फ़िल्मों में जो किया, वो फ्लॉप हुईं. बाद में ड्राई फ्रूट भी बेचे और शेयर मार्केट में भी काम किया.

फिर मोतीलाल ने मौका दिया. साल 1945 की फ़िल्म 'पहली नज़र' में एक गाना गया. रिलीज़ के वक्त पर तय हुआ कि इस नए लड़के ने जो गाना गया है वो बहुत उदास है, ऑडिएंस को समझ नहीं आएगा, लोग बोर हो जाएंगे, गाना फिल्म से निकालो.

ये नया लड़का भागा भागा म्यूज़िक डायरेक्टर से मिला. मिन्नत की. काफी मशक्कत के बाद तय हुआ कि गाने को एक हफ्ते के लिए रखा जाएगा, अगर ऑडिएंस बोर नहीं हुई, गाना पसंद आया तो ये आगे के हफ्तों में भी रहेगा.

2018 में मैं और शायद मुझ जैसे कई मेट्रो के खाली प्लेटफॉर्म को देखते हुए उस लड़के के उसी गाने को सुनते हुए लौटते हैं.

''दिल जलता है तो जलने दो
आंसू न बहा
फरियाद न कर''


वो लड़का मुकेश थे. वो आदमी उदासी में रोमांस खोजता था. कहते थे, '10 हल्के गाने मिलें और एक उदास गाना तो मैं एक उदास गाने को गाना पसंद करूंगा.'

'कभी यूं ही जब बोझल हुई सांसें, भर आईं जब बैठे-बैठे आंखें...'

उदासी पसंद करने वाले लोगों के दिल में भी खुशियों की ख्वाहिशें होती होंगी. मुकेश गाते हैं- कहीं करती होगी वो मेरा इंतज़ार... जिसकी तमन्ना में हूं बेकरार.

वो इंतज़ार खत्म होता है त्रिवेदी जी के यहां जाकर. सरल से मुकेश की सरला से मुहब्बत हुई. जाति का क्यूटियापा बेकरारी टेढी न कर पाया. शादी के लिए आगे आए वही मोतीलाल, जिन्हें डर था कि लड़का दिल को जलाकर ऑडिएंस को बोर कर देगा.

नील एक बड़ा नाम हो सकता था. नितिन की पहचान भी कुछ और होती. लेकिन इनके बाप दादा मुकेश थे. मुकेश इतना आगे थे कि बाकी तुलना में मारे गए. हम किसी एक से दूसरे की तुलना करके सब खराब करने वाले लोगों में हैं.

मुकेश सिर्फ गाते ही सुंदर नहीं थे. दिखते भी अच्छे थे. एक्टर बन सकते थे.  बोले भी तो थे, 'कोशिश भी करी थी जी. मगर इतना नाकामयाब रहा. दो अलग कलाएं हैं. इट इज गुड टू बी ए फर्स्ट क्लास सिंगर...देन ए सेकेंड क्लास एक्टर.'

'ये मेरा दीवानापन है या मुहब्बत का जुनू...तू न पहचाने तेरी नज़रों का कसूर.'

मुकेश की आवाज़ हीरो बन चुकी थी लेकिन शरीर नहीं. फिर वही अपना राजू आता है. कहता है- शरीर मैं तो आत्मा मुकेश.

मंच सजता है. सामने राजू की वो 'प्रेमिकाएं' बैठती हैं, जिनसे सिर्फ राजू ने प्यार किया था. शरीर मुखौटा लगाए खड़ा था. तभी एक आवाज़ आती है, 'कल खेल में हम हों न हों. गर्दिश में तारे रहेंगे सदा. भूलोगे तुम. भूलेंगे वो. पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा. रहेंगे यहीं अपने निशां, इसके सिवा जाना कहां. जी चाहे जब हमको आवाज़ दो...'

ज़िंदगी एक रंगमंच है और हम सब उसकी एक कठपुतली. आनंद कह तो गया था मुकेश की आवाज़ की आड़ में.

लेकिन गाया, लिखा और कहा वही जाए, जो जब जिया जाए तो उतने ही कर्रे से चुभे जितना गाते, लिखते और कहते वक्त था. ज़िंदगी में जब दुख कम हों तो लता दीदी को याद करना चाहिए. 88 की उम्र में 93 की उम्र के अटल बिहारी वाजपेयी को पिता कहने वाली लता दीदी मुकेश को भी मुकेश भैया बोलती थीं.

लता के दीवाने कम न थे. विदेशी चाहते थे कि लता आएं और कॉन्सर्ट करें. ज़रिया बने दीदी के मुकेश भैया.  सरस्वती के रूप वाली लता ने  लक्ष्मी अवतार धरकर कहा- एक शो का आठ हजार डॉलर लूंगी, आपको पड़ता हो तो ठीक वरना रहने दो.

आयोजक तैयार हो गए. दीदी को लगा- आंय, इत्ती जल्दी तैयार हो गए. बोलीं- जल्द बताती हूं. पर लगे महीनों. आयोजकों ने फोन किया और बोला- दीदी को क्या हुआ. मासूम से मुकेश बोले- भारत आइए, कुछ बात हो गई है.

बात ये हुई कि दीदी के मन में लालच आहा लपलप लपलपाने लगा. नई शर्त तय हुई कि प्रॉफिट में से 80 फीसदी लूंगी और आठ हजार डॉलर प्रति शो की गारंटी. आयोजक फँसे हुए थे. तैयार हो गए. अब लता दीदी पहली बार विदेश जा रही थीं और प्रोग्राम कुछ यूं तय हुआ कि मुकेश  को भी गाना था.

अमरीका पहुंचे. कई शो किए. एक रोज़ वहां कॉलेज के बच्चे मिले. बोले- आप लोगों को डिनर कराना है. मुकेश और लता गए. खाना खाया और बिल आ गया ज़्यादा. बच्चे आपस में पैसे निकालकर कॉन्ट्री करने लगे. मुकेश से देखा न गया. बोले-  बच्चे, आप लोग रहने दो, मैं देता हूं बिल. बिल ज़्यादा था लेकिन 80 फीसदी मुनाफे वाली लता दीदी की जेब से एक सिक्का भी नहीं निकला.

दोनों ने साथ में कई शो किए.

ऑडिएंस को शायद सबसे ज्यादा मज़ा तब आता, तब मुकेश कहते होंगे- सावन का महीना पवन करे सोर.. सोर...बाबा सोर. सोर नहीं सोर. मुकेश ही हो सकते थे जो लता से भी गलत उच्चारण निकलवा दें.

ऐसा ही एक शो होना था 1976 में. 27 अगस्त को मुकेश तैयार हो रहे थे. तभी सीने में दर्द हुआ. बेटा नितिन वहीं था. अस्पताल ले जाया गया. मुकेश की आवाज़ खामोश हो चुकी थी. अमरीका के डेट्रॉयट के रेडियो चैनल में वहीं गाना बज रहा था, जिसके बारे में ये शक था कि ये ऑडिएंस को उदास करेगा. 'दिल जलता है तो जलने दे...आंसू न बहा.'

शो कैंसिल हुआ. कुछ रोयी और कुछ संभली लता मंगेशकर शो के आयोजकों से कहती हैं- 'अपने आपको संभालो भैया. सभी आर्टिस्टों को उनका पैसा दे दो.'

राज कपूर की आत्मा मर चुकी थी. वो भारत लौटी तो लेटी हुई. आवाज़ सुनाई नहीं दी. खामोश रही. ऐसी खामोशी जो कई बार प्यार करने वालों को जकड़ लेती है, जिनको डर होता है कि ये साथ छूटा तो... लेकिन दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं.

ऐसे लोगों के लिए ही तो शायद मुकेश अपना पसंदीदा गाना छोड़ गए हैं.

'जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे. तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे...तब तुम मेरे पास आना प्रिये...मेरे दर खुला है खुला ही रहेगा.'

टिप्पणियाँ

  1. सिर्फ़ एक बार ही पढ़ना काफी न हुआ। दुबारा पढ़ा और इस बार बैकग्राउंड में "
    'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब तुम्हें छोड़ दे.. तब तुम मेरे पास आना प्रिये.. मेरे दर खुला है खुला ही रहेगा.'बज रहा था। दिल भर उठा। बहुत सुंदर।

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