गले लगाने पर रोते अपनाते लोग...


साल में कितनी ऐसी तस्वीरें आती हैं, जिनमें हम होते हैं? शायद दो या तीन.

इन तस्वीरों में हमारे चेहरे नहीं दिखते लेकिन होती ये हमारी सेल्फियां हैं.

किसी मिशन के सफ़ल होने पर इसरो से औरतों की हँसती हुई तस्वीरें आती हैं. साड़ियों में अधेड़पन वाला मोटापा लिए इन प्यारी औरतों में हम अपने घर की औरतें देखने  लगते हैं. विक्रम लैंडर से संपर्क टूटना ऐसी तस्वीरों को संख्या की और कम कर देना है. वरना माइक पकड़े बैठी औरत जो बोलने से पहले बार-बार किसी शुभ सिग्नल के इंतज़ार में रुक रही थी, अब तक 'मिलिए इसरो की महिला ब्रिगेड से' वाली ख़बरों में जगह बना चुकी होतीं. हँसती हुई, झूमती हुईं हमारी मौसियों, मां की याद दिलाते हुए. आज ये औरतें बात नहीं कर पाएंगी, मगर इन औरतों की इस छोटी हार के बाद भी कहानियां सामने आनी चाहिए. कैसे रातों में बुरे सपने देखकर जागे बच्चों की पुकार छोड़कर ये औरतें न जाने कितनी रातों से विक्रम लैंडर की पुकार सुन रही हैं. कहानियां सुनने के लिए फ़िल्मों का इंतज़ार नहीं करना चाहिए.



अतीत में आई इन औरतों की तस्वीरों का रिक्त स्थान इसरो प्रमुख के सिवन ने रोकर भर दिया है. मैंने कभी लिखा था- लड़कों को रोना मना था. आज उस लाइन से 'मना' को हटाने का मन हुआ. पीएम मोदी ने जैसे प्रेम से थपथपाया... गले लगाया. लगा कि मोदी की वाजिब वजहों से  की जाने वाली 10 आलोचनाएं माफ़ कर देनी चाहिए. क्योंकि इन्हें पता है कि गले लगाते वक़्त जल्दीबाज़ी नहीं दिखानी चाहिए. कुछ सतहें न मिलें तो दिलों की सतहों को सतहों से गले लगाकर मिला देना चाहिए.

गले लगना गले पड़ना नहीं होता. मोदी जी आप भी चाहें तो राहुल गांधी के गले लगाने पर अपनी कही बात मेरी तरह मिटा दीजिए.



गले लगाना दुखों को म्यूट करता है. संपर्क टूटने पर संपर्क बनाना और कैसे गले लगाना चाहिए, ये हमें प्रेमियों और मोदी से सीखना चाहिए. पढ़े लिखे डॉक्टर मनमोहन सिंह जैसी ग़लतियां नहीं करनी चाहिए, वरना किस्मत आपको मोदी दे देती है. सालों में एक बार बोलो जो उस भाषा में बोलो, जिसमें लोगों तक कम्युनिकेट हो. इंग्लिश में अर्थव्यवस्था वैसे भी कम बिगड़ी जान पड़ती है.

क्योंकि संपर्कों का टूटना तकलीफ देता है. बात कम्युनिकेट ढंग से न हो पाए, इससे बड़ा दुख क्या है.

विक्रम लैंडर से कम्युनिकेशन टूटने से दुखी मन मोदी के सूचना मंत्री जावड़ेकर का अनुच्छेद 370 के बाद दिया बयान याद दिलाता है. 'किसी से संपर्क न हो और आपके पास कम्युनिकेशन का कोई साधन न हो- ये सबसे बड़ी सज़ा हो सकती है.'

कश्मीरियों से संपर्क बनाने के लिए कम्युनिकेशन के सारे तार काट देना विकल्प नहीं हो सकता. कम्युनिकेशन टूटने पर कितना दुख होता है, ये आज हम सब समझ रहे हैं वो भी एक ऐसी दुनिया की ख़ातिर...जहां इंसान नहीं हैं. कश्मीर में तो फिर भी इंसान हैं, जिनका कम्युनिकेशन काट रखा है. कुछ हुड़दंगी भी हैं जो इस कम्युनिकेशन की वजह से थमे पड़े होंगे. लेकिन वो यक़ीनन कम होंगे.

ऐसे लोग भरे होंगे, जो गले लगाने पर रो देंगे.

प्रिय मोदी जी, आप बस आज ही की तरह कश्मीर जाइए. लोगों को गले लगाइए और बिना कुछ वो सब कह दीजिए जिससे संपर्क स्थापित हो जाए. आप गले लगाने बढ़िए तो सही. कभी कश्मीर, कभी मुज़फ़्फ़रपुर, कभी अलवर, कभी असम. फिर देखिए ऐसा संपर्क बनेगा कि सत्ता में आने के लिए नेहरू को याद नहीं करना पड़ेगा.

आप बस गले लगाने पर फोकस कीजिए. पीछे से आपकी हेल्प के लिए कैमरों ने कब ही मना किया है?

तो बस आप गले लगाइए. जैसे अस्पताल का फर्श साफ कर रहे बूढ़े मकसूद को मुन्नाभाई MBBS ने थैंक्यू बोलकर लगाया था और भीगी पलकों से जवाब मिला था,

'बस... रुलाएगा क्या.'

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