भारत का राजपत्र
भावनाएं नहीं जानता
बर्तन धोते लड़के को लगी गोली
नहीं पहचानता
ठंड में एक महीने की बच्ची
और औरतों का कांपना...
कांपना नहीं मानता
भारत का राजपत्र
शक्तियों का प्रयोग करवाना जानता है
अधिकार छीनती सत्ता को
अधिकार देना जानता है
भारत के राजपत्र से
कभी काग़ज़ की नाव नहीं बनाई जा सकी
जिसे झेलम, नर्मदा या ब्रह्मपुत्र में
कोई बच्चा बहाकर उछल सके
हर एक काग़ज़ ज़रूरी हो गया
देशप्रेम सत्ता की जी हुज़ूरी हो गया
भारत का राजपत्र
बदला लेने का अधिकार नहीं देता
पोस्टमार्टम रिपोर्ट पकड़े मां को
दुलार नहीं देता
झूठ, दंगों की बारिश में
भारत का राजपत्र
'का' के ठीक ऊपर
भविष्य छिपाए रहता है
दिखता नीरस है
पर उम्मीद जगाए रखता है
'सत्यमेव जयते'
यानी सच की हमेशा जीत होती है
ये मैं नहीं
भारत का राजपत्र कहता है
अधिकार देता, अधिकार छीनता
जब सच जीतेगा
क्रूरताओं का राजपत्र
तुम्हारा भी भीगेगा
भावनात्मक तौर पर कविता बहुत अच्छी है मगर भावनाओं से देश नहीं चलता. घर को सुरक्षित रखने के लिए खूबसूरत घर के साथ एक मजबूत चारदीवारी भी चाहिए.जहाँ चारो और तुम्हारे देश को काटने की तैयारियां चल रही हो तब राजपत्र ही सुरक्षा की दिवार बनता है.ये सही नहीं है कि राजपत्र कागज की नाव नहीं जानता,कापते हातों को नहीं पहचानता, सच तो यह है की वो अपनी कपोल कल्पना के लिए जिम्मेदारिओं ने नहीं भागता.
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