अब जब हम सब फिर डर गए हैं.
सुकून की चादर से ख़ौफ़ के पांव कहीं आगे बढ़ गए हैं.
दूसरों को देखकर अपनों का डर सताने लगे. धड़कन बढ़ाता जी जब घबराने लगे. तब हमें डरना तो है लेकिन घबराहट के जखीरे को इतना बड़ा नहीं होने देना कि अच्छी उम्मीदें बौनी लगने लगें.
'हिम्मत नहीं हारनी है' लाइन लिखना या कहना बेहद आसान है. हारती हिम्मत को जिताए रखना मुश्किल.और फिर ये दौर, जिसमें है तो सब कुछ नेगेटिव लेकिन लिफाफे पर पॉजिटिव लिखा है.
हमें बस ऐसे लिफाफों को फाड़कर हवा में उर्राने का इंतज़ार करना है. तब तक ये याद रखना है कि इन्हीं आंखों ने पिछले साल कितना कुछ पहली बार देखा था.
जो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए भयावह ही था. हर उम्र ने वो ख़ौफ़ साथ जीकर उम्र के फासलों को मिटा गया. अब तो ये आंखें अनुभवी हो गई हैं.
ये जानती हैं कि कहीं से कोई नंगे पैर चलकर आ रहा हो तो उसे पानी पिलाओ तो प्यास सुनने वाले की भी मिटती है. जूते या चप्पल पहनाओ तो तलवे हमारे भी नरम हो जाते हैं.
कोई भूखा खाना खाए तो पेट अपना भी भरता है. ये आंखें जानती हैं कि कोई अंजान जब दुख के बाद मुस्कुराता है तो वो मुंह से भले ही कुछ ना बोले. लेकिन होंठों पर आई मेक्रो सेकेंड्स वाली मुस्कान इतनी मीठी होती है कि ज़माने भर की शक्कर शर्म से चूर चूर होकर भूरा हो जाए.
वक़्त कम ज़्यादा लगेगा. लेकिन सब अच्छा होगा. तब तक अपने और अपनों को संभाले रखना है.
ज़िंदगी में कुछ लोगों का रहना ज़रूरी होता है. पास या दूर होना डिपेंड-ए-मजबूरी होता है.
कोई महामारी कितनी भी अनुभवी हो जाए, होमोसेपियन्स से लंबे वक़्त तक नहीं जीत पाएगी. हम सब कहानी, किस्से सुनाकर बचे लोग हैं. तो जब जब कोई महामारी आसपास मंडराने लगे तो कहानियां, किस्से बचाए रखने हैं.
ताकि जब डर दरवाजों की कुंडियां खड़काए तो अंदर से हँसी छिपाता कोई बच्चा हर बार आवाज़ लगाए- घर में कोई नहीं है अंकल...
फिर कभी आना. हम किस्से, कहानियां सुनाकर बचे लोग हैं.
अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएं😊😊😊 किस्से कहानियां हमें बचाये हुए है, और फिर इन्हें ही बचाना है अपनों के लिए, सबके लिये😊💐
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